1813 में मध्य प्रदेश से हैदराबाद लाई थी मां काली की मूर्ति, तभी से यहां हर साल मनाते हैं बोनालु का त्योहार
3 Jul, 2020 22:45 IST
बोनालु उत्सव तेलंगाना में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला हिन्दुओं का एक लोक-त्योहार है। इस उत्सव में देवी माँ काली की पूजा की जाती है। यह प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास (जुलाई /अगस्त) में मनाया जाता है। इस उत्सव में महिलाएं रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर स्टील या मिट्टी के घड़ों में दही-गुड़-चावल का मिश्रण भरकर लाती हैं और माँ काली के मंदिर जाकर माँ को अर्पित करती हैं। इन घड़ों को हल्दी, नीम की पत्तियों एवं सिंदूर से सजाया जाता है और घड़ों के ऊपर दीपक जलाकर रखा जाता है। घड़ों को देवी के पास चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही साड़ी, चूड़ियां आदि भी देवी मां को चढ़ाया जाता है। इस उत्सव में देवी से बीमारियों एवं आपदाओं से सुरक्षा तथा वर्षा एवं अच्छी फसल की कामना की जाती है। मान्यता है कि 1813वीं ईसवी में हैदराबाद में हैजा का प्रकोप हुआ था, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। इसी दौरान सैन्य टुकड़ी में से एक मिस्त्री सुरीति अप्पय्या हैदराबाद से मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर चला जाता है। वहां जाकर वह माँ काली का भक्त बन जाता है और मां से प्रार्थना करता है कि यदि वह उसके नगर के लोगों की इस बीमारी से रक्षा करेंगी तो वह अपने नगर में भी उनकी मूर्ति स्थापित करेगा।हैजा का प्रकोप समाप्त हो जाने के बाद सन् 1815 में वह मध्यप्रदेश से माँ काली की मूर्ति लेकर हैदराबाद लौटता है और मां की मूर्ति को गोलकुण्डा में स्थापित कर देता है।इस मंदिर में येलम्मा जगदम्बिका देवी की पूजा होती है। आज भी तेलंगाना में बोनालु की शुरुआत इसी मंदिर से की जाती है।इस त्योहार की अन्य लोक-कथाएं भी हैं। कुछ लोग कहते हैं कि गोलकुंडा में ककतीयाओं और मुस्लिमों के राज से पहले जब वहां चारगाहे रहते थे, तब से यह उत्सव मनाया जाता है।पहाड़ी पर स्थित जगदम्बा मंदिर, जो अब गोलकुण्डा दुर्ग के अंदर है, 500 वर्ष पुराना है। माना जाता है कि देवी अपने दृष्टि में पड़ने वाली भूमि की रक्षा करती है इसलिए यह उत्सव यहीं चढ़ावा चढ़ाने से शुरू होता है। विद्वानों का मानना है कि भारतीय संस्कृति में यह देवी का महीना है। पूरे भारत में आषाढ़ के महीने में किसी न किसी रूप में देवी का पूजन होता है।वैज्ञानिक तर्क के अनुसार हल्दी, नीम, चूना और सिंदूर, जो घड़ों एवं लोगों के हाथ-पैरों पर लगाया जाता है, वह यात्रा के दौरान हवा में मिलकर बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं को मारता है। इस प्रकार विभिन्न बीमारियों एवं एलर्जी को रोका जा सकता है।