हैदराबाद: पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन सतीश शर्मा (captain satish sharma) का शुक्रवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनका बुधवार को गोवा में निधन हो गया था। वह 73 साल के थे। शर्मा कैंसर से पीड़ित थे और पिछले कुछ समय से बीमार थे। उनका अंतिम संस्कार लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में हुआ। इस मौके पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi), पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा , प्रियंका के पति रॉबर्ट वाद्रा तथा कांग्रेस के कई नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने शर्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की। राहुल गांधी ने उनकी अर्थी को कंधा भी दिया। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के निकट सहयोगी रहे शर्मा पी वी नरसिंह राव सरकार में 1993 से 1996 तक केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री रहे।
तेलंगाना के सिकंदराबाद (Secunderabad) में 11 अक्टूबर , 1947 को जन्मे शर्मा एक पेशेवर वाणिज्यिक पायलट (Commercial Pilot) थे। सतीश शर्मा का बचपन तेलंगाना में ही गुजरा था। रायबरेली और अमेठी निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर चुके शर्मा तीन बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे। वह तीन बार राज्यसभा सदस्य भी बने और उच्च सदन में उन्होंने मध्य प्रदेश , उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। वह पहली बार जून 1986 में राज्यसभा सदस्य बने और बाद में राजीव गांधी के निधन के बाद 1991 में अमेठी से लोकसभा सदस्य चुने गए। इसके बाद वह जुलाई 2004 से 2016 तक राज्यसभा सदस्य रहे।
राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए थे शर्मा
लंदन से पढ़ाई करने के बाद वापस भारत लौटे राजीव गांधी ने फ्लाइंग क्लब जॉइन किया था। उन्होंने एयर इंडिया में बतौर पायलट ज्वाइन की। तेलंगाना के सिकंदराबाद के रहने वाले कैप्टन सतीश शर्मा भी इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे, लिहाजा इसी दौरान शर्मा और राजीव गांधी की दोस्ती हुई, जो ताउम्र बरकरार रही। साल 1984 में इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) पर बड़ी सियासी जिम्मेदारी आ गई थी। राजीव अभी सियासत के गुर सीख रहे थे लिहाजा उन्हें भरोसेमंद लोगों की तलाश थी। ऐसे में राजीव गांधी ने अपने दोस्त सतीश शर्मा से राजनीति में आने की गुजारिश की। सतीश शर्मा राजीव गांधी का कहा टाल नहीं सके। उन्होंने पायलट की अपनी नौकरी छोड़कर राजीव के साथ राजनीति की पारी शुरू कर दी। यहां तक कि राजीव गांधी के निधन के बाद भी उन्होंने गांधी परिवार का साथ नहीं छोड़ा।
बुरे दौर में भी नहीं छोड़ा राजीव का साथ
प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी की अहम जिम्मेदारी सतीश शर्मा को दी थी। सतीश ने पायलट की नौकरी से इस्तीफा देकर फुलटाइम पॉलिटिक्स शुरू कर दिया। सतीश शर्मा राजीव गांधी की कोर टीम का लगातार हिस्सा थे। यहां तक कि बुरे दौर में जब राजीव के करीबी दोस्त उनका साथ छोड़ गए थे, तब भी सतीश ने अपने दोस्त का हाथ थामे रखा। 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई, जिसके बाद कांग्रेस ने अमेठी से उनकी विरासत को आगे ले जाने का जिम्मा सतीश को ही दिया था। सतीश ने अमेठी और रायबरेली लोकसभा से तीन बार जीत हासिल की और इसके बाद केंद्र में मंत्री भी बने।
राजीव से लेकर सोनिया-राहुल तक के रहे सारथी
राजीव गांधी के निधन के बाद सतीश शर्मा ने सोनिया गांधी के प्रति अपनी वफादारी कायम रखी। यहां तक कि राहुल गांधी के लिए भी उन्होंने अमेठी-रायबरेली में सियासी जमीन तैयार की। कैप्टन सतीश शर्मा, सिर्फ राजीव गांधी के सारथी बनकर अमेठी आए थे। लेकिन कांग्रेस और सियासत में उन्होंने इतना ऊंचा कद बनाया कि आज भी उन्हें श्रद्धा के साथ हर कांग्रेसी और सियासतदां याद करता है।