भक्त प्रह्लाद ने करवाया था इस मंदिर का निर्माण
वराह और नृसिंह अवतार का संयुक्त रूप है
पूरे साल चंदन के लेप से ढकी रहती है भगवान की मूर्ति
भगवान नरसिम्हा (Lord Narasimha) के कितने ही मंदिर देश के कई राज्यों में हमें मिल जाते हैं, (Simhachalam Temple History In Hindi) लेकिन क्या आप जानते हैं कि भक्त प्रह्लाद, जिसे बचाने के लिए खुद भगवान नरसिम्हा ने इस धरती पर अवतार लिया था, ने अपने इष्ट के जिस मंदिर की स्थापना की थी, वह कहां है? वह कौन सा मंदिर है, जिसे भगवान नरसिम्हा का घर कहा जाता है? आइए, हम आज आपको वहीं की सैर को लिए चलते हैं।
आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) के विशाखापट्टणम (Visakhapatnam) (Simhachalam Temple, Visakhapatnam) से महज 16 किमी दूर सिम्हाचल पर्वत पर स्थित है सिम्हाचलम मंदिर (Simhachalam Temple)। तिरुपति मंदिर (Tirupati Temple) के बाद यह भारत का दूसरा सबसे अमीर मंदिर है। यह मंदिर उड़ीसा और द्रविड़ शैली की वास्तुकला के मेल को प्रदर्शित करता है। इस मंदिर में भगवान् विष्णु के वराह और नृसिंह अवतार का संयुक्त रूप मौजूद है, जहां वे माँ लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं।
यहां भगवान नरसिम्हा की मूर्ति हर वक्त चंदन के लेप से ढकी होती है। यह लेप साल में सिर्फ एक दिन वैशाख तृतीया यानि अक्षय तृतीया को मूर्ति से हटाया जाता है। भगवान नृसिंह की इस मूर्ति के वास्तविक रूप के दर्शन के लिए आपको इस खास दिन पर ही यहां पहुंचाना होगा।
वराह और नृसिंह अवतार का संयुक्त रूप
हिंदू पैराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद ने इस मंदिर का निर्माण भगवान नृसिंह के हाथों हिरण्यकश्यपु के मारे जाने के बाद करवाया था। हालांकि सदियों बाद यह मंदिर धरती में समा गया।
हिंदू पौराणिक कथा अनुसार, सिम्हाचलम का श्री वराह लक्ष्मी नृसिंह स्वामी मंदिर भगवान विष्णु के भक्तों के बीच बेहद लोकप्रिय है क्योंकि यह मंदिर विष्णु के नौवें अवतार, भगवान नृसिंह को समर्पित है। यह मंदिर पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है, जिसे सिम्हाचलम या शेर की पहाड़ी कहा जाता है।
कहा जाता है कि प्रह्लाद के बाद पुरुरवा नाम के एक राजा ने इसे फिर से स्थापित किया था। पुरुरवा ने धरती में समाए मंदिर से भगवान नृसिंह की मूर्ति निकालकर उसे फिर से यहां स्थापित किया और मूर्ति को चंदन के लेप से अच्छी तरह से ढक दिया।
तभी से यहां इसी तरह पूजा करने की परंपरा है। साल में केवल वैशाख मास के तीसरे दिन अक्षय तृतीया पर ये लेप प्रतिमा से हटाया जाता है। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है। सिम्हाचलम देवस्थान की आधिकारिक वेबसाइट भी इस बात की पुष्टि करती है।
मंदिर को लेकर मान्यताएं:
सिम्हाचलम मंदिर की कथा
मान्यतानुसार, एक बार राजा पुरुरवा पत्नी उर्वशी के साथ वायु मार्ग से भ्रमण कर रहे थे। यात्रा के दौरान उनका विमान किसी नैसर्गिक शक्ति से प्रभावित होकर दक्षिण के सिम्हाचल क्षेत्र जा पहुंचा। उन्होंने देखा कि प्रभु की प्रतिमा धरती के गर्भ में समाहित है। उन्होंने इस प्रतिमा को निकाला और उस पर जमी धूल साफ की।
इस दौरान एक आकाशवाणी हुई कि इस प्रतिमा को साफ करने के बजाय इसे चंदन के लेप से ढककर रखा जाए। इस आकाशवाणी में उन्हें यह भी आदेश मिला कि इस प्रतिमा के शरीर से साल में केवल एक बार, वैशाख माह के तीसरे दिन चंदन का यह लेप हटाया जाए। केवल इसी दिन इसकी वास्तविक प्रतिमा के दर्शन हो सकें।
आकाशवाणी का अनुसरण करते हुए इस प्रतिमा पर चंदन का लेप किया गया। उसके बाद से साल में केवल एक ही बार इस प्रतिमा से लेप हटाया जाता है।
सिम्हाचलम मंदिर का महत्व
दर्शन का समय
यहां सुबह चार बजे से ही मंदिर में मंगल आरती के साथ दर्शन शुरू हो जाते हैं। सुबह 11.30 से 12 और दोपहर 2.30 से 3 बजे तक दो बार आधे-आधे घंटे के लिए दर्शन बंद हो जाते हैं। रात को 9 बजे भगवान के शयन का समय हो जाता है इसलिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
ऐसे पहुंचे इस मंदिर तक…
वायु मार्ग: यह स्थान हैदराबाद, चेन्नई, कोलकता, नई दिल्ली और भुवनेश्वर से वायु मार्ग द्वारा सीधे जुड़ा हुआ है। यहां तक के लिए सप्ताह में पांच दिन चेन्नई, नई दिल्ली और कोलकाता से इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट उपलब्ध है।
रेल मार्ग: चेन्नई-कोलकाता रेल लाइन का मुख्य स्टेशन माना जाता है विशाखापट्टणम। नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद से भी विशाखापट्टणम सीधे जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग: हैदराबाद से 650 और विजयवाड़ा से 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है विशाखापट्टणम। यहां तक पहुंचने के लिए नियमित रूप से हैदराबाद, विजयवाड़ा, भुवनेश्वर, चेन्नई और तिरुपति से बस सेवाएं उपलब्ध हैं।