जया एकादशी का महत्व
जया एकादशी की पूजा विधि
जया एकादशी का शुभ मुहूर्त
माघ महीने (Magh Maas) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी (Jaya Ekadashi) कहते हैं। इस एकादशी को बहुत पुण्यदायी माना जाता है। कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्रानुसार इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को भूत-प्रेत, पिशाचों से भी मुक्ति मिल जाती है।
मान्यता के अनुसार, जो कोई भक्त जया एकादशी व्रत का पालन सच्ची श्रद्धा के साथ करता है उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का पूजन करने से दोषों से मुक्ति मिलती है। इस बार जया एकादशी व्रत 23 फरवरी, मंगलवार यानी आज रखा जाएगा।
हिन्दू धर्म में जया एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डव पुत्र युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताया था, जिसके बाद उन्होंने जया एकादशी का व्रत किया था।
ये है जया एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में जया एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है। यही नहीं इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से भी मुक्त हो जाता है।
मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने और श्री हरि विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति बुरी योनि से छूट जाता है। कहते हैं कि जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। प्राचीन मान्यताओं के अुनसार जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करता है वह अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करता है।
जया एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ : 22 फरवरी सायं 05:16 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त : 23 फरवरी सायं 06:05 बजे तक
जया एकादशी पारणा मुहूर्त : 24 फरवरी को सुबह 06:51 बजे से 09:09 बजे तक
ऐसे करें जया एकादशी पर पूजा
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर भगवान विष्णु का ध्यान करें। फिर व्रत का संकल्प लें।
- अब घर के मंदिर में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- अब एक लोटे में गंगाजल लें और उसमें तिल, रोली और अक्षत मिलाएं।
- इसके बाद इस लोटे से जल की कुछ बूंदें लेकर चारों ओर छिड़कें। फिर इसी लोटे से घट स्थापना करें।
- अब भगवान विष्णु को धूप-दीप दिखाकर उन्हें पुष्प अर्पित करें।
- अब घी के दीपक से विष्णु की आरती उतारें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- इसके बाद श्री हरि विष्णु को तिल का भोग लगाएं और उसमें तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करें।
- इस दिन तिल का दान करना अच्छा माना जाता है।
- शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा कर फलाहार ग्रहण करें।
- अगले दिन यानी कि द्वादशी को सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
जया एकादशी की व्रत-कथा
इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था परन्तु उसका मन अपनी प्रिया को याद कर रहा था। इस कारण से गाते समय उसकी लय बिगड़ गई। इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
पिशाच योनी में जन्म लेकर पति पत्नी कष्ट भोग रहे थे। संयोगवश माघ शुक्ल एकादशी के दिन दुःखों से व्याकुल होकर इन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया और रात में ठंड की वजह से सो भी नहीं पाये। इस तरह अनजाने में इनसे जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के प्रभाव से दोनों श्राप मुक्त हो गये और पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये।
देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस इनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो हैरान हुए। गन्धर्व और उनकी पत्नी ने बताया कि उनसे अनजाने में ही जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।
जया एकादशी के दिन क्या करें
शास्त्रों में बताया गया है कि इस व्रत के दिन पवित्र मन से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। मन में द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना नहीं लानी चाहिए। नारायण स्तोत्र एवं विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस प्रकार से जया एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
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जो लोग इस एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं वह भी आज के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें और जरुरतमंदों की सहायता करें तो इससे भी पुण्य की प्राप्ति होती है।