रविवार को अवश्य करें सूर्य पूजा
रविवार सूर्य पूजा का महत्व
रविवार सूर्य पूजा की कथा
रविवार को विशेष रूप से भुवन भास्कर सूर्य देव की पूजा की जाती है और माना जाता है कि सूर्यदेव प्रसन्न होकर सेहत के साथ ही सफलता का वरदान भी देते हैं। सूर्य को जगत में न सिर्फ प्रकाश देने वाला ग्रह बल्कि ग्रहों का राजा भी माना जाता है। सूर्य के उगते ही अंधकार नष्ट होकर जगत में प्रकाश को फैल जाता हैं। अगर आप भी सूर्यदेव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं और आप रविवार के व्रत की पूजा विधि, कथा और महत्व के बारे में नहीं जानते तो हम आपको इन सभी चीजों के बारें में बतायेंगे। जिसके बाद आपके धन, नौकरी ,व्यापार और यश मान जैसी समस्याएं हल हो जाएगी। सूर्यदेव का धातु तांबा है और इनका प्रिय रंग लाल है। इसलिए इस दिन सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करते हुए लाल पुष्प जरूर चढ़ाएं।
रविवार को ऐसे करें सूर्य देव की पूजा
-सुबह सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी, सरोवर या तालाब में स्नान करें।
- एक तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें कुमकुम, गुड़ डाल कर उन्हें अर्पित करें।
- एक बड़े पीपल के पत्ते पर अपनी मनोकामना लिखकर जल में प्रवाहित कर दें।
- सूर्य को जल देते हुए मां लक्ष्मी को आने का निमंत्रण दें।
- गाय का शुद्ध देसी घी लेकर उसका दीपक जलाएं।
ये है रविवार की व्रत कथा
सभी मनोकामनाएं पूर्ण करनेवाले और जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा हेतु सर्वश्रेष्ठ व्रत रविवार की कथा इस प्रकार है-
प्राचीनकाल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान को भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती।
सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था। उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई।
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं। पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई।
गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी। बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला।
बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया।
सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उस नगर के राजा के पास भेज दिया।
सुन्दर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरन्त लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा. तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा।
सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया। राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दण्ड दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत किया करें।
रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए। चारों ओर खुशहाली छा गई. सभी लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए. राज्य में सभी स्त्री-पुरुष सुखी जीवन-यापन करने लगे।
रविवार को सूर्य देव को जल चढ़ाने का महत्व
रविवार की पूजा बिना सूर्यदेव को जल चढ़ाए पूरी नहीं होती। अगर आप ऐसा रविवार के अलावा प्रतिदिन करते हैं तो भगवान की कृपा आपके ऊपर बरसती रहेगी। सूर्यदेव को जल अर्पित करने से सभी परेशानियां तो दूर होती ही हैं। इसके साथ ही आर्थिक वृद्धि होनी शुरू हो जाती है। अगर किसी भक्त से सूर्यदेव प्रसन्न हो जाते हैं तो उसके घर की तिजोरी कभी खाली नहीं रहती। उसके मान सम्मान में लगातार वृद्धि होती रहती है, दुश्मन भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।
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