6 जून से आषाढ़ मास शुरू हो चुका है
आषाढ़ मास में क्या करें, क्या नहीं
आषाढ़ मास का महत्व
आषाढ़ का महीना हिंदू कैलेंडर का चौथा महीना होता है। यह महीना ज्येष्ठ के बाद और सावन के पहले आता है। इस महीने से ही वर्षा काल की शुरुआत हो जाती है। हिंदू पंचांग में सभी महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। हर महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के पर रखा गया है।
आषाढ़ नाम भी पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों पर आधारित हैं। आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं दो नक्षत्रों में रहता है। इसलिए प्राचीन ज्योतिषियों ने इस महीने का नाम आषाढ़ रखा है। अगर पूर्णिमा के दिन उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र हो तो यह बहुत ही शुभ और पुण्य फलदायी संयोग माना जाता है। इस संयोग में दस विश्वदेवों की पूजा की जाती है।
आषाढ़ का महीना 6 जून 2020 से शुरू हो गया है और यह अगले महीने 5 जुलाई 2020 को समाप्त होगा। आषाढ़ मास के प्रमुख त्योहार में जगन्नाथ रथ यात्रा है। इस महीने में सूर्य और देवी की भी उपासना की जाती है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार आषाढ माह में गुरू की उपासना सबसे फलदायी होती है। इस महीने में श्री हरि की उपासना से संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है। इस महीने में जलदेव की उपासना का महत्व है कहा जाता है कि जलदेव की उपासना करने से धन की प्राप्ति होती है। ऊर्जा के स्तर के संयमित रखने के लिए आषाढ़ के महीने में सूर्य की उपासना की जाती है। खास बात है यह की इस बार आषाढ़ के महीने में तीन ग्रहण लगेंगे, जिनमें 2 चंद्रग्रहण और एक सूर्यग्रहण है। एक चंद्र ग्रहण निकल गया है। अब 21 जून को सूर्यग्रहण और 5 जुलाई को चंद्र ग्रहण है।
बता दें कि स्वास्थ के नजरिए से यह माह ठीक नहीं होता है। दरसल आषाढ़ मास संधि काल का महीना है। आषाढ़ मास से बर्षा ऋतु की शुरुआत हो जाती है। इसलिए इस महीने में रोगों का संक्रमण सर्वाधिक होता है।
आषाढ़ मास में क्या करना चाहिए ....
- इस महीने के देवता सूर्य और भगवान विष्णु के अवतार वामन है। इसलिए आषाढ़ महीने में इनकी ही पूजा और व्रत करने का महत्व बताया गया है।
- इस महीने में भगवान वामन और सूर्य की उपासना के दौरान कुछ नियमों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
-आषाढ़ महीने में सूर्योदय से पहले उठकर नहाने का बहुत महत्व है। इस महीने में सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और ध्यान की मदद से उर्जाओं को नियंत्रित कर के खुद को निरोगी रखा जा सकता है।
-स्कंदपुराण के अनुसार आषाढ़ महीने में एकभुक्त व्रत करना चाहिए यानी एक समय ही भोजन करना चाहिए।
- इसके साथ ही संत और ब्राह्मणों को खड़ाऊ (लकड़ी की चरण पादुका) छाता, नमक तथा आंवले का दान करना चाहिए। इस दान से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं।
- इसके साथ ही लाल कपड़े में गेहूं, लाल चंदन, गुड़ और तांबे के बर्तन का दान करने से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं।
आषाढ़ मास में क्या न करें ....
- रविवार को भोजन में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- इस महीने में ज्यादा मसालेदार भोजन से भी बचना चाहिए।
- इसके साथ ही ब्रह्मचर्य के नियमों का पालना चाहिए। - तामसिक चीजों और हर तरह के नशे से भी दूर रहना चाहिए।
- इस समय स्वच्छ जल का सेवन करना चाहिए।
- इस समय खान-पान में रसीले फलों का सेवन करना चाहिए।
- पाचन को दुरुस्त बनाए रखने के लिए कम तली भुनी चीजों का सेवन करें।
- आषाढ़ माह में सौंफ, हींग और नींबू का सेवन करना लाभदायक होता है। इस समय घर के आसपास पानी को एकत्रित होने न दें।
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