माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत सूर्यदेव को समर्पित है। इस दिन किए गए स्नान, दान, होम, पूजा आदि सत्कर्म हजार गुना अधिक फल देते हैं। इस बार ये पर्व 1 फरवरी, शनिवार को है।
रथसप्तमी को माघी सप्तमी या अचला सप्तमी भी कहते हैं। आज ही के दिन ही सूर्य देव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे, इसलिए आज की तिथि को सूर्य देव के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। आज के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने और विधि विधान से पूजा करने से धन-संपदा के साथ पुत्र रत्न की भी प्राप्ति होती है।
ऐसे करें रथसप्तमी पर सूर्यदेव की पूजा
सूर्यदेव का जन्मोत्सव है रथ सप्तमी। रथ सप्तमी के दिन नदी में स्नान करने के बाद सूर्य देव को दीप दान करने की परंपरा है। ऐसा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। दीप दान में एक दीपक जलाकर उसे पत्ते के कटोरे में फूल आदि से सुशोभित कर जल में प्रवाहित करना होता है। आप नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं, तो पानी में गंगा जल डालकर घर पर ही स्नान कर लें।
फिर कपूर, धूप, लाल पुष्प आदि से भगवान सूर्य की पूजा करें। उनको जल से अर्घ्य दें। अर्घ्य में फल, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि रखें। अर्घ्य देते समय ओम घृणि सूर्याय नम: या ओम सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें।
रथ सप्तमी को सूर्य देव की पूजा के बाद दिनभर फलाहार करें। आज के दिन सूर्य देव की पूजा करने से वर्ष भर का फल प्राप्त होता है। संतान सुख के साथ सौभाग्य में वृद्धि भी होती है।
रथसप्तमी पर सूर्य पूजा के बाद करें दान
आज के दिन अपने गुरु को वस्त्र दान करें। दान में मिल का उपयोग जरूर करें। आज के दिन गाय दान करने का भी विधान है।
ये है रथ सप्तमी से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक स्त्री ने अपने जीवनकाल में कोई दान पुण्य नहीं किया। जब उसे जीवन के अंतिम चरण में इसका बोध हुआ तो वह वशिष्ठ मुनि के पास पहुंची। उसने यह बात उनको बताई। तो उन्होंने उसे अचला सप्तमी यानी रथ सप्तमी व्रत की महिमा बताई।
उन्होंने उससे कहा कि अचला सप्तमी व्रत करने से, सूर्य को दीप दान करने से पुण्य लाभ होता है। उसने मुनि के बताए अनुसार, अचला सप्तमी का व्रत रखा और सूर्य देव की विधि विधान से पूजा की। उस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त हुआ।
दूसरी कथा है यह
माघ शुक्ल सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था।
एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए। वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था।
शाम्ब उनकी दुर्बलता का मजाक उड़ाने लगा और उनका अपमान भी किया इसे बात से क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया।
शाम्ब की यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना करना प्रारंभ किया, ऐसा करने से कुछ समय में ही कुष्ठ रोग ठीक हो गया।
इसलिए जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करता है। उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है।
सूर्यदेव के स्वागत में बनाती हैं रंगोली
रथ सप्तमी के दिन कई घरों में महिलाएं सूर्य देवता के स्वागत के लिए उनका और उनके रथ के साथ चित्र बनाती हैं। वे अपने घरों के सामने सुंदर रंगोली बनाती हैं।
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आंगन में मिट्टी के बर्तनों में दूध डाल दिया जाता है और सूर्य की गर्मी से उसे उबाला जाता है। बाद में इस दूध का इस्तेमाल सूर्य भगवान को भोग में अर्पण किए जाने वाले चावलों में किया जाता है।