हम सब जानते ही हैं कि रविवार सूर्यदेव को समर्पित है और इस दिन विशेष रूप से उनको अर्घ्य दिया जाता है, पूजा की जाती है। वैसे तो हर दिन सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व है पर रविवार को इसका महत्व बढ़ जाता है।
वहीं देखा जाए तो सनातन धर्म में सूर्य को भगवान का दर्जा मिला है। ग्रह विज्ञान के हिसाब से भी सूर्य को सभी ग्रहों से श्रेष्ठ माना गया है। सूर्य ऊर्जा का स्रोत है और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। वे इसकी रोशनी प्राप्त करते हैं।
सनातन धर्म ने भी इसके महत्व को समझा है और इसीलिए सबसे श्रेष्ठ मानते हुए सूर्य देव की पूजा को महत्व दिया गया है। सूर्य को जल अर्पित किया जाता है। सूर्य को जल अर्पण करने के पीछे धार्मिक कारणों के साथ-साथ कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हैं।
वहीं हम सब यह भी जानते हैं कि सूर्य पूजा व अर्घ्य सुबह-सवेरे ही किया जाता है। सूर्योदय के साथ ही सूर्य पूजा की जाए तो विशेष फलदायी होती है। यहां सवाव उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है, क्यों सूर्यदेव की पूजा सुबह ही की जानी चाहिए।
तो आइये यहां इन्हीं सवालों का जवाब जानते हैं ....
- सबसे पहले तो यह जान लीजिये कि जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर होता है या जिनमें आत्मविश्वास की कमी होती है या फिर जो निराशावादी होते हैं या फिर जिन्हें घर-परिवार में मान-सम्मान की अभिलाषा होती है उनके लिए सूर्य को जल चढाना महत्वपूर्ण माना गया है।
- माना जाता है कि सूर्य की किरणों में सात रंगों का समावेश होता है जो रंग हम कृत्रिम रोशनी में नहीं देख पाते वे सभी सूर्य की रोशनी में सपष्ट दिखाई देते हैं। सूर्य की रोशनी के कारण ही हम रंगों की सही पहचान करने में सक्षम होते हैं।
- कहते हैं कि सुबह जब कोई व्यक्ति सूर्य को जल चढ़ाता है तो सूर्य से निकलने वाली किरणें उसको स्वास्थ्य लाभ देती हैं। सुबह के समय सूरज की जो किरणें निकलती हैं वे शरीर में होने वाले रंगों के असंतुलन को सही करती हैं। सूरज की किरणों में सात रंगों का समावेश होता है। यह रंग 'रंगों के विज्ञान' पर काम करते हैं। माना जाता है कि सुबह के समय सूर्य को जल चढ़ाते समय इन किरणों के प्रभाव से रंग संतुलित हो जाते हैं और साथ ही साथ शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है।
- धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्यदेव को आत्मा का कारक माना गया है। प्रात:काल सूर्य देव के दर्शन से मन को बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। यह शरीर में स्फूर्ति लाता है।
सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है और प्रकाश को सनातन धर्म में सकारात्मक भावों का प्रतीक माना गया है। दुख, तकलीफ और परेशानियों को रात या अंधेरे से जोड़ा गया है। जब सूर्य का उदय होता है तो अंधकार गायब होने लगता है अर्थात सूर्य के आने से सभी नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाती हैं। यही वजह है सूर्य को श्रेष्ठ ईश्वर का दर्जा दिया गया है।
- सूर्य को जल चढाने के लिए सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करके तांबे के लोटे से सूर्य को जल अर्पित करने का विधान है। इस विधि के दौरान जल की धारा में से उगते सूरज को देखना चाहिए इससे धातु और सूर्य कि किरणों का असर आपकी दृष्टि के साथ-साथ आपके मन पर भी पडेगा और आपको सकारात्मक उर्जा का आभास होता रहेगा।
- सूर्य को जल अर्पित करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की अर्घ्य किया हुआ जल बेकार ना जाए। वो जल किसी वनस्पति में गिरे तो आपको सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
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- इसके साथ-साथ जल चढाते वक्त सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: का जाप करते रहना चाहिए। सूर्य को जल चढाने का सही वक्त सूर्योदय ही होता है।